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ज़िन्दगी गुलज़ार है

०६ अक्टूबर ज़ारून 

इस वक़्त रात के ११ बजे हैं और मैं गुस्से से बेहाल हो रहा हूँ. पता नहीं कशफ़ ख़ुद को समझती क्या है. कभी-कभी वो मुझे एब्नार्मल लगती है. मैं सिर्फ़ उसकी खातिर फैसलाबाद गया था और उसका रवैया इतना रूड था कि मैं बयां नहीं कर सकता. एक बार फिर वो मुझे पहले की तरह ख़ुद-सर (अड़ियल) और अक्खड़ लगी.

आज जब मैं उसके ऑफिस गया था, तो मुझे तवक्को नहीं थी कि वो मुझसे दोबारा वही सुलूक करेगी. कार्ड भेजने के बाद मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा. हालांकि उसका पी.ए. परेशान था, क्योंकि उसके ज़ेहन में पिछली मुलाक़ात का नक्शा यक़ीनन ताज़ा होगा.

बैठें.” मेरे अंदर जाते ही उसने सपाट अंदाज़ में कहा था, “फ़रमायें, अब क्या काम है?”

मेरे बैठते ही उसने पूछा था. उसका अंदाज़ मेरे लिए हैरान-कुन (हैरान कर देने वाला) था.

मैं किस काम के लिए आ सकता हूँ यार! तुम मुझसे इस तरह बात कर रही हो, जैसे मुझे जानती ही नहीं या पहली बार देखा है.”

तुम मुझसे ऑफिस में मिलने आये हो और ऑफिस में मिलने वही लोग आते हैं, जिन्हें कोई काम होता है.” उसका रवैया अब भी वही था.

चलो फिर यही समझ लो कि मुझे तुमसे काम है. असल में एक कांफ्रेंस के सिलसिले में लाहौर आया था. सोचा फ़ैसलाबाद जाकर तुमसे मिल लूं.” मैंने अपने आने की वजह बताई.

ठीक है, अब तुम मुझसे मिल चुके हो, इसलिए जा सकते हो.” उसने बड़े कोरे अंदाज़ में कहा था.

मैं तो कल सुबह जाऊंगा. आज आरिफ़ के पास ठहरूंगा. तुम अपना काम खत्म करो और मेरे साथ चलो, कहीं लंच करते हैं. फिर ड्राइव पर चलेंगे, मगर पहले तुम मुझे चाय पिलवाओ क्योंकि मैं लाहौर से सीधा तुम्हारे पास आया हूँ, कुछ खाये-पिये बगैर.” मैं तब काफ़ी अच्छे मूड में था.

ठीक है, अगर तुम चाय पीना चाहते हो, तो मैं पिलवा देती हूँ. लेकिन इसके लिए तुम्हें विजिटर रूम में जाना पड़ेगा. मैं पी.ए. को चाय के बारे में कह देती हूँ और लंच या ड्राइव का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. तुमने ये सोचा कैसे कि तुम मुझे ऑफर करोगे और मैं मुँह उठाकर तुम्हारे साथ चल पडूंगी. तुम्हारे नाम की एक अंगूठी है सिर्फ़ मेरे हाथ में और ये अंगूठी मुझे तुम्हारे साथ घूमने-फिरने का कोई रीज़न प्रोवाइड नहीं करती. तुम्हारा शुक्रिया कि तुम मुझसे मिलने आये, मगर आइंदा ऐसे ज़हमत मत करना. यहाँ लोग मेरी इज्ज़त करते हैं और मैं चाहती हूँ वो करते रहें.”

तुम ज्यादा कर रही हो. इसी ऑफिस में एक बार पहले भी तुमने मेरी इन्सल्ट की थी. तब मैं बर्दाश्त कर गया था, लेकिन अब नहीं कर सकता. तुम्हें इस क़दर बे-एतबारी है कि बात तक करना पसंद नहीं करती और मैं बेवकूफ़ों की तरह तुम्हारे दिल से माज़ी की ग़लतफ़हमियों को दूर निकालने की कोशिश करता फिर रहा हूँ. मैं कोई बेकार या आवारा आदमी नहीं हूँ. इतना मशरूफ़ रहता हूँ, जितनी तुम या शायद तुमसे भी ज्यादा, मगर फिर भी तुम्हारे लिए वक़्त निकालकर आया हूँ और तुम मुझसे यूं ट्रीट कर रही हो, जैसे मैं कोई मुसीबत हूँ. मैं अब ये सब कुछ बर्दाश्त नहीं करूंगा, क्योंकि मैं ऐसे रवैये का आदी नहीं हूँ. तुम्हें ख़ुद को बदलना पड़ेगा. मुझसे यूं बिहेव करके तुम अपने लिए अच्छा नहीं कर रही हो.”

मैं ये कहकर दरवाज़ा पटक कर आरिफ़ के पास चला गया. रात को खाना खाने के बाद कमरे में सोने चला गया. जब आरिफ़ ने मुझे बुलाया था.

तुम्हारी मंगेतर यानी हमारी ए.सी. कशफ़ मुर्तज़ा का फोन है. अगर यहाँ बात करनी है, तो कर लो. वैसे बेहतर है कि फोन अपने कमरे में ले जाओ, क्योंकि हो सकता है तुम मेरे सामने डायलॉग बोलते हुए शरमाओ. तुम ना शरमाये तो मैं ज़रूर शरमा जाऊंगा.

वो मुझे छेड़ रहा था, मगर मैं इतने अच्छे मूड में नहीं था कि उसकी छेड़-छाड़ का जवाब देता. इसलिए ख़ामोशी से फोन लेकर अपने कमरे में आ गया. उस वक़्त मेरे दिल में ये ख़याल आया कि शायद कशफ़ माज़रत (माफ़ी मांगना) करना चाहती है और उस ख़याल ने मुझे ख़ुश कर दिया था.

देखें ज़ारून जुनैद साहब! ऑफिस में आपसे ज्यादा बात नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने आपको रोका नहीं. लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं, जो क्लियर हो जानी चाहिए. मैं आपकी ग़लतफ़हमी दूर करना चाहती हूँ. मैं शादी से आपके साथ सैर या तफ़रीह (घूमने-फिरने) के लिए नहीं जा सकती. मैं नहीं चाहती कि आपके साथ लंच पर जाऊं और अगले दिन किसी लोकल अखबार में मेरी तस्वीर आ जाये कि ख़ातून असिस्टेंट कमिश्नर अपने आशना (महबूब) के हमराह (साथ). हर कोई नहीं जानता कि तुम मेरे मंगेतर हो. तुम्हारे लिए अपना करियर दांव पर नहीं लगा सकती. और अगर मुझे ये मजबूरी ना होती, तब भी मैं तुम्हारे साथ हॉटेलिंग नहीं कर सकती. जो बातें मुझे दूसरों के लिए बुरी लगती है, उसे ख़ुद करना कैसे शुरू कर दूं? सबसे आखिरी बात ये है कि मुझमें ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो तुम्हें नापसंद हैं और रहेंगी. इसलिए बेहतर है कि शादी के फैसले पर एक बार फिर गौर कर लो और मुझे बता देना, ताकि मैं तुम्हें तुम्हारी चीज़ें वापस भिजवा सकूं.”

   उसने मेरे सारी खुशफ़हमियों को एकदम से खत्म कर दिया था.

कशफ़! तुम किस क़दर क़दामत (रुढ़िवादी) पसंद हो. कितनी तंग-नज़र (संकुचित दृष्टि, narrow-minded) हो. क्या तुम आज की औरत हो? तुम तो हर रोज़ मर्दों से मिलती हो, मगर अपने मंगेतर के साथ तुम्हें लंच तो दूर की बात, मिलना पसंद नहीं.”

हाँ मैं क़दामत (रुढ़िवादी) पसंद हूँ और मुझे इस बात पर फ़क्र है.” उसकी बात पर गुस्से की एक लहर सी मेरे अंदर उठी थी.

तुम मुझसे क्या चाहती हो?”

मैं चाहती हूँ कि तुम इस मंगनी के बारे में एक बार फिर सोचो और पूरा यक़ीन रखो कि अगर तुम ये मंगनी तोड़ना चाहते हो, तो मुझे कोई अफ़सोस नहीं होगा.”

तुमने मुझसे बात करते हुए दो बार मंगनी तोड़ने का कहा है. तुम्हारे नज़दीक रिश्ते तोड़ना क्या इस क़दर आसान है? बहरहाल जो हुआ सो हुआ, अब मैं तुम्हें ये बता रहा हों कि मैं अगले माह तुमसे शादी करना चाहता हूँ. मैं इसी हफ्ते तारीख तय करने ले लिए अपने वालिदान को तुम्हारे घर भेजूंगा और प्लीज मैं कोई बहांना सुनना नहीं चाहता.” मैंने उसे अपना फैसला सुना दिया था. 

लेकिन इतनी जल्दी कैसे हो सकता है. मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ.” पहली दफ़ा उसके लहज़े में परेशानी थी.

मैं कल तो शादी नहीं कर रहा हूँ. तुम्हारे पास काफ़ी दिन हैं. तुम अपने लिए कुछ जेवर और कपड़े तैयार करवा सकती हो और अगर इसलिए ज्यादा दिन चाहती हो कि कोई जगह जहेज़ (दहेज) वगैरह तैयार कर सको, तो फॉरगेट अबाउट इट. मुझे किसी जहेज़ की ज़रूरत नहीं. मेरे पास ज़रूरत की हर चीज़ है. आज मैं इस्लामाबाद में पोस्टेड हूँ. कल किसी और मुल्क चला जाऊंगा. तो क्या चीज़ें उठाकर फिरता रहूंगा. तुम अपने वालिदन को बता देना.”

उसका जवाब सुनने से पहले ही मैंने फोन रख दिया था. मेरे दिल में उसके लिए बेहद गुस्सा है. उसे अगर मेरे साथ रहना है, तो ख़ुद को बदलना पड़ेगा. इस हद तक, जिस हद तक मैं चाहता हूँ. वरना उसे बहुत बुरे नतीजे का सामना करना पड़ेगा. मैं शादी के बाद उसकी किसी गलती को माफ़ नहीं करूंगा.”

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2 Comments

Radhika

09-Mar-2023 04:21 PM

Nice

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Alka jain

09-Mar-2023 04:08 PM

शानदार

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